लेखकों ने , कवियों ने प्रेम को एक बहुत ही अद्भुत रूप में प्रस्तुत
किया है ...हमेशा यही कहा गया है कि प्रेम ईश्वर का रूप है ...प्रेम से बढकर संसार
में कुछ भी नहीं .. कुछ ने तो ये तक कहा है कि प्रेम कि तुलना में विवाह एक बहुत
छोटा शब्द है ....प्रेम बंधन नहीं मानता , सीमाएं नहीं मानता ... यह शरीरों का
नहीं आत्माओं का मिलन है ... लेकिन मैंने अपने जीवन में जब भी देखा है तो प्रेम को
एक आकर्षण से ज्यादा कुछ नहीं पाया ...प्रेम को सदा मैंने एक भूल भुलैया जैसा पाया
....प्रेम में हम सर्वश्रेष्ठ दिखना चाहते हैं ...सर्वश्रेष्ठ होना चाहते हैं
...प्रेम कल्पनाओ की उड़ान है यहाँ कुछ भी भोतिक नहीं है हम जो नहीं हैं वो होना
चाहते हैं सामने वाले कि नज़र से खुद को देखना चाहते हैं ...चाहें उसके लिए हमें
स्वयं को बदलना ही क्यूँ न पड़े ... जो एक मुख्य बात मैंने महसूस कि है वह यह है कि
प्रेम कभी भी सहज और सरल नहीं हो सकता यदि हमें उसके लिए स्वयं को बदलना पड़े ...
हम जैसे हैं यदि वैसे ही सामने वाला हमें स्वीकार करना चाहे तो वह प्रेम है .. और
यदि हमें थोडा भी आवरण पड़े या खुद को
बदलना पड़े तो फिर वह प्रेम नहीं हो सकता ....
विवाह की यही बात मुझे
प्रभावित करती है कि यह व्यक्ति को वो होने कि स्वतंत्रता देता है जो वह है .....
जो वह होना चाहे... मैंने बहुत से प्रेमी जोड़ो को देखा जो विवाहित भी थे और विवाह
नहीं भी कर पाए ... तो पाया कि वे उन जोड़ो से किसी भी रूप में भिन्न नहीं थे जिनका
विवाह घर वालों की मर्जी से हुआ था ...प्रेम को मैंने जितना भी समझा है वह एक
म्रग्मारीचिका से ज्यादा कुछ नहीं लगी जो जब तक हमसे दूर रहती है हमें लुभाती है
लेकिन उसे प्राप्त कर लेने पर उसका आकर्षण स्वत: ही ख़त्म हो जाता है ... जबकि एक
सफल विवाह में हम शुरू से ही इस सत्य को स्वीकार करके चलते है कि जो जैसा है हमे
वैसा ही स्वीकार है और यदि ऐसा नहीं है तो फिर विवाह भी असफल हो जाता है ...एक सफल
दाम्पत्य जीवन के लिए आवश्यक है कि त्रुटियों और कमियों को भली भांति स्वीकार किया
जाये ...और यदि एक बार ऐसा होता है तो फिर जिंदगी एक खुशनुमा सफर बन जाती है और हमसफ़र का साथ आपकी सबसे बड़ी ताकत।
जिन्दगी अर्थ नहीं कि सार निकले।यह एक अहसास हैं जिसमें डूबना उतरना विवेक नहीं एक जिज्ञाशा हैं जो मुकाम नहीं चाहती निरंतरता चाहती हैं जहां प्रेम का अस्तित्व सुगंध की क्षणिकाओ बिखेरता विरल होता हैं ।
जवाब देंहटाएंओर पडाव ढूँढता पर पाता नहीं ।आपके विचारों की सत्य ता सराहनीय हैं ।बधाई ।