शुक्रवार, 13 मार्च 2015


मुझे अपार्टमेंट कल्चर कभी भी पसंद नहीं आया ... मुझे फ्लेट्नुमा घर एक पिंजरे की तरह लगते है जहाँ से इंसान प्रकति को देख तो सकता है लेकिन छू नहीं सकता ...मेरे हिसाब से हरेक इंसान को कम से कम इतनी जगह तो मिलनी चाहिए कि वह एक बगीचा बना सके...कुछ पोधे उगा सके ...एक घना छायादार पेड़ जिसके नीचे वो सुकून से बैठ सके .....मिट्टी की गीली गीली खुशबू उसके दिमाग को तारो ताजा रखे .....जहाँ से उसे पक्षियों का चहचहाना ...कोयल का गाना सुनाई दे सके ... जहाँ से वह रोज़ सूर्य को निकलते और डूबते देख सके ...हवा के झोंको के ठन्डे स्पर्श को महसूस कर सके ..जो उसे हर पल प्रेरणा दे सकें ...और उसके थके हुए तन मन में फिर से स्फूर्ति भर सके .....


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