रविवार, 25 जनवरी 2015

आज कल लिखना लगभग ना के बराबर हो रहा है।  लिखने लिए वैसे भी बहुत सा खाली समय चाहिए होता है जो आज कल नहीं मिल पा रहा है।  वैसे भी एक वक़्त में या तो दिमाग ही सक्रिय हो सकता है या फिर दैनिक कार्य पूरे किये जा सकते हैं। इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि हमारे रोजाना की दिनचर्या में दिमाग की भागीदारी नहीं होती। बिलकुल होती है लेकिन फिर  भी रोज़मर्रा के काम कुछ यांत्रिक सी प्रक्रिया में होते रहते हैं जिनके बीच में दिमाग शून्य सा बना रहता है। हाँ लेकिन बात जब हमारी पसंद के कार्यो की होती है तो एक आत्मसंतुष्टि का अनुभव होता है। फिर चाहें वो आश्रम के बच्चों की ईवनिंग क्लास हो जिसे मैंने अपनी दैनिक दिनचर्या में एक अनिवार्य कार्य के रूप में शामिल कर लिया है। दिन भर में किये गए सभी कार्यों में ये एक घंटा मन को प्रसन्न कर जाता है। हर दिन में इंतजार करती हूँ इसका। आत्मसंतुष्टि क्या होती है इसका अनुभव मुझे अब हुआ है। पूरे जोश के साथ मेरी टीम काम करती है। ये बिलकुल वैसा ही अनुभव है जैसा मुझे एक कविता लिखने पर या अपनी पसंद का कोई और कार्य करने पर होता है। इस सबके बीच यदि लिखना पढ़ना कुछ काम हो भी जाए तो कोई बात नहीं।  जीवन हर मोड़ ओर नए अनुभव करता है , नई राहें दिखाता है। क्या पता किस राह पर चलते चलते हमें अपनी खुशियों की चाबी मिल जाये। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें