शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

उसकी आँखों की चमक ने मुझे हैरान कर दिया। यह वही तेज है जो किसी विदुषी के चेहरे पर होता है। साधारण से कपड़ों में भी उसकी सुंदरता नज़र आ रही थी। सहसा ही मुझे आभास हो गया कि बचपन से अब तक जिस विद्या की देवी माँ सरस्वती को पूजती आई हूँ उसका वास्तव में अस्तित्व है। लोग सही कहते हैं कि विद्या उसी को मिलती है जिस पर माँ सरस्वती का आशीर्वाद होता है। और आज मोनिका से मिल कर मुझे ऐसा ही लगा। लेकिन यह मुझे अनाथाश्रम के इस कमरे में देखने को मिलेगा इसकी उम्मीद कम थी मुझे। जूलॉजी से एमएससी, बी-एड और अब सिविल सर्विसेज की तैयारी। बस आगे पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं पर होने वाले खर्चे को लेकर थोड़ी असमंजस थी। उसके कमरे में व्यवस्थित रूप से रखी मोटी-मोटी किताबें, करीने से लगे बिस्तर ,पूजा का कोना ,कपड़े, सब कुछ उस के रुचिपूर्ण होने का बयां कर रहे थे। मैं हमेशा की तरह आश्रम के बच्चों की कैरिअर काउंसलिंग कर रही थी। जिन-जिन को मुझसे शिक्षा सम्बन्धी जानकारी लेनी थी वे आकर मुझसे मिल कर जा रहे थे। और जिन को कोचिंग आदि लेनी होती है मुझसे मेरे ऑफिस आकर संपर्क कर लेते हैं। मुझे मालूम था कि यहाँ से बहुत सी बच्चियाँ कॉलेज भी जाती हैं। ज्यादातर बच्चियाँ यहाँ स्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं ,बहुत कम लड़कियाँ कॉलेज पढ़ाई पूरी कर पाती हैं। और सही भी है बिना किसी सहयोग और मार्गदर्शन के, बिना माता-पिता की छत्रछाँव के वह इतना पढ़ लेती हैं वही बहुत है। मोनिका के बारे में मैंने पहले भी सुना था। लेकिन संयोग की बाद है कि पहले कभी उससे मुलाकात नहीं हो पाई थी। आज आश्रम के कमरों से होकर गुज़रते वक़्त मैंने धीरे से उसके कमरे में झांक कर देखा तो मुझे एक अलग ही दुनिया नज़र आई। अनाथाश्रम की एक मेज पर रखीं वो विज्ञान जैसे जटिल विषयों कि किताबों को देखकर मेरी आँखों में आँसू भर आए। मैंने किसी तरह खुद को संभाला। मेरी आँखों के आगे मेरे छात्र जीवन के वो साल घूमने लगे। जब एग्जाम  दिनों में हाथ में दूध का गिलास लेकर मेरी माँ मेरे आगे-पीछे डोलती थी। और मैं नखरे दिखती हुयी पढ़ाई में लगी रहती थी। पापा मेरे परीक्षा में सही समय पर पहुँचने को लेकर परेशान रहते थे। तमाम सुख सुविधाओं में रह कर मैंने पढ़ाई पूरी करी। मेरी आँखों के आगे वो सब दृश्य घूमने लगे जिनमें मैंने धनाढ्य परिवारों के लोगों को उनके पढ़ाई में कमज़ोर बच्चो के बारे में चिंतित होते देखा था। और आज मोनिका से मिलकर मुझे लगा कि जिन कठिन परिस्थितियों में रह कर उसने इतनी उच्च शिक्षा पाई है वह जरूर किसी उपलब्धि से कम नहीं है। उसके प्रतियोगी परीक्षाओं की समस्या का मैंने समाधान कर दिया लेकिन उससे जिंदगी का बहुत बड़ा सबक ले लिया।

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