रात के तीन बजे, आईसीयू के बाहर बैठी मैं, आँखों में नींद का नामो-निशान तक नहीं, बस पता नहीं क्या सोचे जा रही थी। घटनाएं धीरे-धीरे मेरे दिमाग में घूमने लगती हैं। जो दृश्य सबसे पहले सामने आते हैं , उनमें सबसे ज्यादा मम्मी के आँचल को पकड़े घूमना। और फिर उनका खाना लेकर मेरे पीछे लगे रहना । फिर पापा का मेरी बर्थडे पार्टी अरेंज करना। उन्हें मालूम है कि बर्थडे पर मैं बहुत ज्यादा वल्नरेबल हो जाती हूँ। बहुत ज्यादा इम्पोटेंस चाहिए होती है मुझे। फिर भैया का चेहरा आँखों के आगे घूमने लगता है। ओफ्ओह इतना प्यार , इतनी पजेसिवनेस कि कभी कभी मुझे गुस्सा आने लगता था। सब कुछ कितना ठीक चल रहा था फिर अचानक क्यों ? सब कुछ क्यों बदल गया। मुझे अपना वही घर पसंद है पुराना वाला, जहाँ हम सब खुश थे , बहुत खुश। जिंदगी मेरे प्रति सदा सौतेला व्यहवार क्यों रखती है? हर ग़म हँस के सह लिया ,तकलीफों में भी मुस्कुराती रही। कभी कोई शिकवा नहीं, शिकायत भी नहीं, फिर भी मुझे खुश रहने का हक़ क्यों नहीं है ? एम्बुलेंस की आवाज से डर लगता है। बहुत पुराना डर है ये। ये वार्डबॉय का हंसना बहुत बुरा लगता है। जी करता है उससे कहूँ तुम कैसे हंस सकते हो जब तुम्हारे सामने किसी का कोई अपना बीमार पड़ा है। लेकिन उसके लिए तो यह महज़ एक रूटीन है। मुझसे पूछो मुझ पर क्या गुज़रती है जब मेरा कोई अपना इस तरह बीमार होता है। नहीं, मुझे नहीं पसंद ये आईसीयू, ये वार्डबॉय, बहुत घबराहट होती है यहाँ। कभी नहीं आना चाहती मैं यहाँ।
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