बुधवार, 24 दिसंबर 2014


किसी ने मुझसे कहा ये जो तुम इतना घबराती रहती हो, इसे एंग्जाइटी कहते हैं। इसकी एक दवा आती है होमिओपैथी में। मैं  हैरान हो गयी सुनकर। अच्छा तो अपनों की फ़िक्र, उन्हें खो देने का डर भी एक बीमारी है। यदि ऐसा है तो फिर मुझे किसी रीहैब में ले चलो ,मैं बीमार ही सही। लेकिन सच कहूँ तो जिंदगी में इतना कुछ खोया है कि अब जो है उसे सहेज के रखना चाहती हूँ। डरती हूँ कि मेरे अपनों को कोई तकलीफ न हो। बाकि हाँ कभी-कभी बेवजह की बातों पर भी परेशान हो जाती हूँ।  यूँ ही कभी उदास रहने लगती हूँ या बहुत रोने को जी चाहता है। लेकिन फिर ज्यादा देर उदास भी नहीं रह पाती। थोड़ी सी देर में फिर खिलखिलाने लगती हूँ। देर रात अगर गलती से भी किसी ने फोन कर दिया तो फ़ोन की घंटी सुनते ही दिल में वो बेचैनी होती है कि जिसका कोई हिसाब नहीं। टीवी पर कोई दुखद घटना देख लेती हूँ तो उदास हो जाती हूँ।
अपने सितारे ही कुछ ऐसे हैं, कि जिंदगी ने बचपन से अब तक हर कदम पर एक इम्तिहान लिया है। फिर भी दिल ने ख़ुशी को ढूंढने का हर भरसक प्रयास किया है। 

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