गुरुवार, 31 जनवरी 2013


दुनिया में सब बेकार है अगर आप को रात  को चैन की नींद न आये।
आप बेशुमार दौलत कमा लें, शोहरत कमा  लें लेकिन अगर रात  को बिस्तर पर लेटने के बाद सुकून  की नींद न आये तो इससे ज्यादा परेशानी की बात और कोई नहीं। ये एक ऐसी बेशकीमती चीज़ है जिसकी कीमत वही लोग समझ सकते हैं जो रात में नींद की गोलियां खाकर सोया करते हैं। ये नींद भी एक अजीब चीज़ है जब आप चाहते हैं तब नहीं आती और जब नहीं चाहते तब बरबस आँखों को बंद किये जाती है। कभी किसी छोटे बच्चे को सोते हुए देखा है ? कितनी मीठी नींद सोता है वो। या कभी अपनी दादीमाँ को, जो ज़रा सी आवाज़ से चौंक कर उठ जाती हैं।किसी ने क्या खूब कहा है " सो जाते हैं फुटपाथ पे अख़बार बिछा कर, मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते। नींद के भी कई वेरिफ़िकेशन्स हैं, इसका  जिन्दगी से एक अजीब सा कॉर्डिनेशन होता है। ये या तो उन्हें नसीब होती है जो सब कुछ अचीव कर चुके हों या जिनके पास खोने के लिए कुछ भी न हो। इसका ख़ुशी से भी गहरा ताल्लुक है। दुनिया में  ख़ुशी का हर किसी का अलग अलग पैमाना  होता है। इसको डिफाइन करना बहुत मुश्किल है। हर कोई ख़ुशी को अपने अपने चश्मे से देखता है। एक आम आदमी के लिए उसकी उपलब्धियाँ ही उसकी  ख़ुशी का मापदंड होती हैं। फॅमिली, अच्छी जॉब ,एक घर, बड़ी कार ,साउंड बैंक बैलेंस ,और भी न जाने क्या-क्या। लेकिन अगर इन सब चीज़ों के बाद भी नींद न आये तो सब कुछ बेमानी सा हो जाता है। तो ये बात समझ में आती है कि नींद का मटेरिअलिस्टिक चीजो से कोई सरोकार नहीं है बल्कि ये दिमागी सुकून पर निर्भर करती है और दिमागी सुकून के लिए जरूरी है कि हमारा दिल खुश रहे।।ये दिल भी बड़ी अजीब शह  है। कभी तो सब कुछ पाकर भी खुश नहीं रहता और कभी इक छोटी सी चीज़ पाकर ही बहल जाता है। और एक बार अगर ये जिद पर आ जाये तो फिर चाहे उसे सारी दुनिया ही क्यों न मिल जाये वो उसी एक चीज़ पर ताउम्र मचलता रहता है जो उसे हासिल नहीं हो पाती । अब बात जब दिल की आती है तो मुझे जगजीत सिंह की ग़ज़ल का वो शेर याद आता है कि "दिल भी एक जिद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह, या तो सब कुछ ही उसे चाहिए या कुछ भी नहीं।"


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